Book Title: Dharm Parikshano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 327
________________ |चारण मुनिए अवधे करीरे, कडं गंधर्व सरूप ॥ ज० ॥ तुरंग विना सुरदेवनेरे, वेदन करशे नूप ॥ ज वा ॥ १७ ॥ श्रापमा खंड तणी कहीरे, दशमी ढाल रसाल ॥ ज० ॥ रंगविजय शिष्य एम कहेरे, नेमविजय उजमाल ॥ ज० वा ॥ १५ ॥ उदा. | सूतो उठ्यो शेठजी, हय नवि दीगे तेथ ॥ अश्वपालने पूबीयु, कोण जाणे गयो केथ ॥ १॥ ठगी गयो ते धर्म ठग, श्यो उत्तर नृप देश ॥धर्म करता एड्वो, श्रावी| जापमीयो क्लेश ॥२॥ टाले श्री जगवंतजी, मरणांतग उवसग्ग ॥ शरण करी जिन- II धर्मनो, चैत्य कर्यो काउस्सग्ग ॥३॥ चुगले जश् चाडी करी, कह्यो अश्व उदंत ॥ घर बुंटी नूपति कहे, करो एहनो अंत॥४॥चाकर चैत्ये दोमीया, कर साही करवाल ॥ देरा मांही पेसतां, देवे थंच्या ततकाल ॥५॥ सेनानी नृप मूकीयो, कदेवा तेह हे वाल ॥ कोपी सेना सज करी, चमी थाव्यो नूपाल ॥६॥ नूप विना सहु थंजीया, लाचिंते राजा चित्त ॥ कोई उपाय इसो होये, रहे रतन ने मित ॥ ७॥ विद्याधर जिन|वर नमी, सामी साहाय्य निमित्त ॥ श्रश्व लेश्ने श्रावीया, चंपापुरी तुरत ॥ ७॥

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