Book Title: Dharm Parikshano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 335
________________ विहित मुनि समाचारी, पाले नहीं ते अणगारी ॥ आहारना दोष बायाल, टाले नहीं कीही काल ॥ ५ ॥ धब धब धसमसतो चाले, काचे जले देह पखाले ॥ चरचा अर चना वंदावे, वस्त्रादिक शोन बनावे ॥ ६ ॥ परिग्रह वली जोजो राखे, वली वली अधिकाने धांवे ॥ माठी जे करणी कहीए, ते सघली जिसमें लदीए ॥ ७ ॥ एवा जेह कुगुरु आरंजी, मुनि साधु कहेवाये जी ॥ किय कम्म प्रशंसा करीए, जव जव ग्रहमा अवतरीए ॥ ८ ॥ लोढानी नावाने तोले, जवसायरमां जे बोले ॥ नेम कहे जलो अहि कालो, पण कुगुरुनी संगति टालो ॥ ए ॥ ढाल चोथी. | कर जोमी आगल रही - ए देशी. ju गिरुत्रा गुरु जैलखो, दयडे सुमति विचारीरे ॥ गुरु सुपरीक्षा दोहली, मूलां पडे नर नारीरे ॥ गु० ॥ १ ॥ पांचे इंद्रि वश करे, पंच महाव्रत पालेरे ॥ चार कषाय तजी जेणे, पांचे किरिया टालेरे ॥ गु० ॥ २ ॥ पांचे सुमते सूमता रहे, तीन गुपति जे धारेरे ॥ दोष बेंतालीश टालीने, पाणी जात आहारेरे ॥ गु० ॥ ३ ॥ ममता बांकी देहनी, निरलोजी निरमायीरे ॥ नवविध परिग्रह परिहरे, चित्तमें चिंतन कांइरे

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