Book Title: Dharm Parikshano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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धर्मपरीलोक धर्म ॥ कं० ॥ ७॥ संवत् अढार एकवीशमां, मास वैशाक सुद पल ॥ तिथि नखंग ए
पांचम गुरुवासरे, गाया गुण में सल ॥ कं ॥ ॥ विजापुरमा विराजता, वृक्ष ॥१६॥
तपा पदे सनूर ॥ चंद्र गठमां दीपता, श्री जिनसागर सूर ॥ कं० ॥ ए॥ तेहनी सानिध में सही, गायो रास उल्लास ॥ उदो अधिको अदर होये, शुद्ध करजो पंमित तास ॥ कं० ॥ १० ॥ रास कर्या कविए घणा, पण धर्मपरीक्षानो रास ॥ एह समोवम को नहीं, जेमा अधिकार ले खास ॥ कं० ॥ ११॥ सर्व संख्याए ग्रंथ कह्यो, पांच हजार उपर पांच ॥ ढालो कही नव खंमनी, एकसो ने दश वांच ॥ कं० ॥१२॥ श्री हीरविजय सूरि तणो, शुजविजय तस शिष्य ॥ नाव विजय कवि दीपता, सिछि नमुं निशदिस ॥ कं० ॥ १३ ॥ रूपविजय रंगे करी, कृष्ण नमुं कर जोम ॥ रंगविजय गुरु माहरा, मुज प्रणम्यानो कोम ॥ कं० ॥ १४ ॥ नवमो खंम प्रो थयो, साते ढाले करी सत्य ॥ नेमविजय कहे नित्य प्रते, राखजो धर्मशुं चित्त ॥ कं० ॥ १५ ॥
N ॥१६ ॥ इति श्रीधर्मपरीदारासे नवम खंमः समाप्तः
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