Book Title: Dharm Parikshano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 339
________________ कला न पहोंचे सोलमीरे, श्री जिनधर्म विशालोरे ॥ ज्ञा० ॥ ए ॥ जिनधर्म मुक्तिपुरी दीएरे, चोगति भ्रमण मिथ्यात ॥ एम जिनवर प्रकाशीयोरे, त्रीजो तत्त्व विख्यातोरे ॥ ज्ञा० ॥ १० ॥ ढाल सातमी. घर श्रावोजी खांबो मोरीयो - ए देशी. श्री जिनधर्म आराधीए, करी निज समकित शुद्ध ॥ जवि तप जप क्रिया कीधली, | लेखे पडे ते विशुद्ध ॥ १ ॥ कंचन कसी कसी लीजीए, नाएं लीजे परीख ॥ देव गुरु धर्म जोश्ने, खादरीए सुपो शीख ॥ कं० ॥ २ ॥ कुगुरु कुदेव कुधर्मने, परिहरीए विष जेम | सुगुरु सुदेव सुधर्मने, ग्रहीए अमृत करी तेम ॥ कं० ॥ ३ ॥ मूल धरम जिनवरे कह्यो, समकित सुरतरु एह ॥ परजव सुख संपत्ति थकी, समकितशुं धरी नेद ॥ कं० ॥ ४ ॥ सकल वामव प्रतिबूजीया, के ग्रह्मां व्रत बार ॥ केश्ए चोथा व्रतने ग्रह्मो, केइ थया अणगार ॥ कं० ॥ ५ ॥ के मृषावाद उंचरे, के पाले शुद्ध आचार ॥ समकतिधारी सहु थया, विनयी विवेकी नर नार ॥ कं० ॥ ६ ॥ सुस्ती सूरिना उपदेशथी, पाम्या धर्मनो मर्म ॥ केइ जाशे सुरलोकमें, केइ पामशे मृत्यु -

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