Book Title: Dharm Parikshano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 337
________________ डुर्लन ॥ ज०॥१॥ आपे गोकुल गायनां, आपे कन्यारे दान ॥ आपे क्षेत्रे पुण्यारथे, ब्राह्मणने देइ मान ॥ ज० ॥ २ ॥ लुटावे धाणी वली, पृथ्वी दानशुं प्रेम ॥ गोला कलसारे मोरीया, आपे हल तिल हेम ॥ ज० ॥ ३ ॥ वली खणावेरे खांतसुं, कुवा सुंदर वाव ॥ पुष्करणी करणी जली, सरवर सखर तलाव ॥ ज० ॥ ४ ॥ कंदमूल मूके नहीं, अग्यारस व्रत दीस ॥ श्रारंभ ते दिन प्रति घणो, धरम किहां जगदीश ॥ ज० ॥ ५ ॥ याग करे होमे तिहां, घोडा नर ने रे बाग || होमे जलचर मींगकां, धर्म किहां वीतराग ॥ ज० ॥ ६ ॥ करे सदाइरे नोरतां, जीव तथा श्रा आरंभ ॥ दणे सारे बोकडा, जेहथी नरक सुलंन ॥ ज० ॥ ७ ॥ सरावे ब्राह्मण कने, पूर्वज तणोरे श्राद्ध ॥ ते मी पोंखेरे कागमा, देखो एह उपाध ॥ ज० ॥ ८ ॥ तीरथ जाये गोदावरी, गंगा ग यारे प्रयाग ॥ नाहे अणगल नीरमां, धरम तो नहीं लाग ॥ ज० ॥ ए ॥ इत्यादिक करणी करे, परजव सुखनेरे काज ॥ एषी करणी मले नहीं, एहथी शिवपुर राज ॥ ज० ॥ १० ॥ नवमा खंग तणी जली, पांचमी ढाल रसाल ॥ रंगविजय शिष्य एम जणे, नेमने मंगल माल ॥ ज० ॥ ११ ॥

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