Book Title: Dharm Parikshano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 320
________________ खंग 5 धर्मपरी तेहने देखी तातनेरे लोल, मलवा करे उमाहरे ॥ सु व्य० ॥ ॥ गामां उंट ने पोठीयारे लोल, नलां नरी क्रयाणरे ॥ सुणा बेहेन तणी अनुमति लेरे लोल, सागर ॥१५॥N कीध प्रयाणरे ॥ सु० व्य० ॥ ए ॥ नगर श्रव्युं जब हकमुरे लोल, निसरीया साथ | मूकरे ॥ सुणा उतावला घर जाइएरे लोल, राते गया वाट चूकरे ॥ सु व्य०॥ १० ॥ अटवी मांही जर पड्योरे लोल, नूखे अति पीमायरे ॥ सु॥ फल पाकां ने फूटरांरे । लोल, सहने श्राव्यां दायरे ॥ सा व्य॥११॥सागर प्रले तेहनेरे लोल, कहो।। एहनुं तुमे नामरे ॥सु॥ नाम अमे जाणुं नहींरे लोल, एशुं नहीं मुज कामरे ॥ सुन व्य० ॥ १५ ॥ जेणे फल खाधां ते ढळ्यारे लोल, धरणी तले भ्रसकायरे ॥ सु० ॥ स्त्रीरूप धरी वनदेवतारे लोल,नियम परीदे थायरे ॥सुव्य० ॥१३॥ सरस सुगंध फल आगोरे लोल, मूकी नाखे नारीरे ॥ सु॥ ए फल सुंदर जे जखेरे लोल, रोग जरा दे निवारीरे ॥ सु व्य० ॥ १४ ॥ जरा जाजरी हुं हतीरे लोल, तरुणी था। फल खायरे ॥ स॥ सागर कहे नाम एनंरे लोल, मुजने सुणावो मायरे ॥ सु n व्यम् ॥ १५ ॥ नाम नथी हुँ जाणतीरे लोल, तो मुजने ले निमरे ॥ सु० ॥ व्रतनो नंग करूं नहींरे लोल, ज्यां जीवं त्यां सीमरे ॥ सु० व्य० ॥ १६ ॥ दृढपणुं देखी wr

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