Book Title: Dharm Parikshano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
देवतारे लोल, त्रुठी कहे वर मागरे ॥ सु॥ मित्र उगमो माहरारे लोस, जेम पुःख जाये नागरे ॥ सु० व्य० ॥ १७ ॥ टाली मूरग तेहनीरे लोल, श्राएया सूरजपुर पासरे ॥ सु०॥ रतनमंझपे सागर ग्वेरे लोल, नाटक करे उदासरे ॥ सु० व्य० ॥ ॥ १७॥ राजा अचरिज सांजलीरे लोल, आव्यो जोवा काजरे ॥ सु०॥ मातपिता श्रावी मल्यारे लोल, धर्मश्री सीध्यां काजरे ॥ सु० व्य० ॥ १५॥ धर्म जिनेश्वरनो| तिहारे लोल, में पाम्यो मन नावरे ॥ सु० ॥ कुंदलता माने नहींरे लोल, तुमे कहो |||| |वात बनावरे ॥ सु व्य० ॥२०॥ नूप सचिव मन चिंतवेरे लोल, पापणी न माने साचरे ॥सु॥ आठमा खमनी भाउमीरे लोल, ढाल कही नेमे वाचरे ॥सु व्य० ॥१॥
विद्युक्षता प्रते वारता, हवे शेठ पूबंत ॥ तुजने प्राप्ति धर्मनी, केम थर कहो विरतंत ॥ १ ॥ बोले ते विद्युलता, चंपापुरे सुदंग ॥ नूपति राज करे नलो, वरते श्राण अखंड ॥२॥ शेठ नाम सुरदेव बे, गयो व्यापारे विदेश ॥ अश्वरतन ले। श्रावीयो, कुशल आपणे देश ॥३॥ मूल देश राजा लीया, घोमा घणा प्रधान ॥ वधी प्रीति नृप शेग्ने, ते दिनथी बहु मान ॥४॥ मासखमणने पारणे, शेठ घरे

Page Navigation
1 ... 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342