Book Title: Dharm Parikshano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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खंकन
ते देखावेरे, अश्व युगल लो जे दाय श्रावेरे ॥१२॥ उबला दीठा ते वे लीधारे, समुन
दत्तनां वांडित सिर्धारे॥आठमा खंडनी नवमी ढालरे, नेमविजये कही उजमालरे ॥१३॥ ॥१६॥
उदा. अशोक कहेरे मूढ तुं, आज कालमां प्राण ॥ मूके एहवा अश्वने, कां से ए अंध जाण ॥१॥ कनकाजरण अलंकर्या, माता उंचा वाह ॥ बीजा से तुं बापडा, बांकी एहनी चाह ॥२॥ समुदत्त कहे एणे सयु, नहीं अवरशुं काम ॥ पासे उना ते
कदे, जम उराग्रही नाम ॥३॥ हित उपदेश एहने विषे, दीधो निष्फल थाय ॥ धूमूरखनु औषध नहीं, कहे महा कविराय ॥४॥
यतः- मूर्खस्य षड्चिह्नानि । गर्व उर्वचनं मुखम्॥
विवादी विरोधी च । कृत्याकृत्यं न मन्यते ॥१॥ जा मुज पुत्री थासक्त डे, कह्यो दशे एह नेद ॥ गहन चरित्र के नारीनो, कसो करूं
मन खेद ॥५॥ जो ए थश्व आपुं नहीं, थाय प्रतिज्ञा नंग ॥ कमनश्री परणावीने, वादीधा तेह तुरंग ॥६॥
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॥१६१॥

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