Book Title: Dharm Parikshano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 314
________________ खंग धर्मपरीकीसी, वलतुं बोले बुद्धसिंह बोल ॥ सो० ॥ के परj के सरणुं श्रागर्नु, ए मुज जाणो वचन अमोल ॥ सो पु० ॥ ६॥ आश्वासीने तेह जमामीयो, करशुं ता-1* ॥१५६॥ दरं वेगुं काम ॥ सो० ॥ दिन दिन देहरे जा नपासरे, श्रावक थयो कपट परणाम | ॥ सो पु० ॥ ७ ॥ बुद्धसिंहे परणी रिषन सुता, पदमश्री आणी आवास ॥ सो ॥ मिथ्या करणी देखी तेहनी, दिल मांही ते रही विमास ॥ सो० पु० ॥ ७॥ पदमश्रीने बुध गुरु एम कहे, पुत्री सिध्यां वंडित काम ॥ सो ॥ सर्व धर्म मांहे बोध धर्म वडो, जिहां कुःख तणुं नहीं नाम ॥ सो० पु० ॥ ए॥ उत्तर वलतो पदमश्री दीए, हंस सरिखा जे नर होय ॥ सो० ॥ पाणी दूध पटंतर ते करे, अरिहंत धर्म समो नहीं कोय ॥ सो पु०॥ १० ॥ रिषनदास अणसण करी आराधना, काळे पहोतो मुगति मोकार ॥ सो० ॥ सासु ससरो नणंद विशेषथी, संतापे वली तस नरतार ॥ सो पु० ॥ ११॥ तोपण धरम न मूके मानिनी, ससरो कहे वहु सांजल |वात ॥ सो० ॥ तारो बाप मरी मृगलो थयो, वनमां मुज गुरु लही अवदात ॥ सो ॥ १२ ॥ जो तुम गुरु एवा ज्ञानी अजे, तो परनाते तेह जमाम ॥ सो ॥ हुँ पण साचो धरम समाचलं, ना मिथ्यामति सवि बांझ ॥ सो पु० ॥१३॥ वहुनुं वचन सु ॥१५६॥

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