Book Title: Dharm Parikshano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 317
________________ । तस कीधो, अरधासन बेसण दीधो हो ॥ ना ॥ जो ए जम घर जावे, तो नारी मु|ज घर श्रावे हो ॥ ना० ॥ ॥ चिंतवी एम रसोश, विष सहित करावे सोश हो ॥ |ना ॥ जोजनवेला सुविसाले, जमवा बेग एक थाले हो ॥ ना ॥ ए॥ रसवती पारसी जुझ, बुझसिंह मन शंका दुश् हो ॥ ना० ॥ जला बेग नाश, एक थाल किसी || जुदा हो ॥ ना० ॥ १० ॥ एम कही नेधुं अन्न, कीर्छ जम्या विण मन्न हो ॥ ना० ॥ |पड्या मूरा खाइ, लोके कयुं शेग्ने जाइ हो ॥ ना० ॥ ११॥ शोकाकुल तिहां श्रावे, |पदमश्री एम बोलावे हो ॥ ना ॥ पुत्र सारथवाह खांणी, में साकणी तुं सही जाणी हो ॥ ना० ॥ १२ ॥ एहने तुं जीवामे, नहींतर घालुं तुज खांडे हो ॥ ना ॥ संकट ए कोण श्राव्यु, पदमश्री मनमा जाव्युं हो ॥ ना० ॥ १३ ॥ सतीए जपी नवकार, उतार्यो विषनो नार हो ॥ ना ॥ पंच दिव्य तिहां वूग, शासननी देवा तुग हो । ना० ॥ १४ ॥ पदमश्री प्रिय साथे, नगरे थाणी नरनाथे हो ॥ ना ॥ बोध जति |बुधदास, करे जैन धरम उल्लास हो ॥ ना० ॥ १५ ॥ हुँ तिहां समकित पामी, प्रत्यक्ष |फल देखी स्वामि हो ॥ ना० ॥ कुंदलतानी कसोटी, ए वातां सघली खोटी हो ॥ नाण

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