Book Title: Dharm Parikshano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 316
________________ धर्मपरी ॥१५ ॥ ढाल सातमी. खंग बिंदलीनी देशी. रिखजी रीस न कीजे, क्रोधे करी संजम बीजे हो ॥ नारी मति निरखोजी ॥ हुँ। नवि बोर्बु मरखा, प्रत्यद देखाईं परीक्षा हो ॥ ना० ॥१॥ जो कुमी थक्ष रंग, देवो. तुज एडवो दंग हो ॥ ना० ॥ मुंमी मस्तक खर चामी, तुजने मूकीशुं कहामी हो ॥ ना ॥२॥ जो हुं था साची, तुमे जैन धरमे रहो राची हो ॥ ना० ॥ एम मांहो मांहे नाखी, पामोशी राख्या साखी हो ॥ ना०॥३॥ उबकाव्या ते मोगा, मिंढलना करी प्रयोगा हो ॥ ना ॥ खंग चरमना जीणा, देखामी कीधा दीणा हो ॥ ना० ॥ ४ ॥ मठ पोताने श्राव्यो, बुधदास शेठ तेमाव्यो हो ॥ ना ॥ कहे वहुने काढ घरपी, कुटुंबनो जो होये थरथी हो ॥ ना ॥ ५॥ काढी वहु काली हाथे, बुद्धसिंह निसरीयो साथे हो॥ना ॥ मान जिहां नवि खहीए, ते नगरी मांडे नवि हो ॥ ना० ॥ ६ ॥ एम चिंतवी नीकलीयां, सारथवाहने जश् मलीयां हो ॥ ना ॥४॥२५॥ पदमश्री देखी बलीयो, सारथवाहनो मनं चलीयो हो ॥ ना ॥७॥ श्रादर बहोलो १ मूर्ख.

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