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दोष हो ॥ काष्ठ कृपाण करावीयो, रा० पुण्य तणो थयो पोष हो ॥ दा ॥ १४॥ हमणां धर्म प्रनावथी, राण लोह खड्ग ए दीसे हो ॥ सांजले राजा प्रजा सहु, राण धरम करो निशदिसे हो ॥ दा ॥ १५॥ हुं धरमे निश्चल थश, रा० प्रत्यक्ष प्रत्यय जोय हो ॥ शेठ प्रमुख साचुं कहे, राण लता न माने सोय हो ॥ दा० ॥१६॥ चोर मंत्री राजा कहे, रा तजे न पुरजन चाल हो॥ खंग आग्मे चोथी जली, राण नेमविजय कहे ढाल हो । दा० ॥ १७ ॥
उदा.
| नागश्री पूजे थकी, जंपे मधुरी वाण ॥ में एम समकित पामीयु, प्रीतम दयडे
आण ॥१॥ नगरी नाम वणारसी, जीतारि तिहां नूप ॥ कनकचित्रा राणी रतन, रंजा सरखी रूप ॥२॥ सुता सुमित्रा तेहनी, माटी बहोली खाय ॥ पांडु रोग तेथी| थियो, थार्या मली एक आय ॥३॥ तस उपदेशे तिणे तज्यां, अनंतकाय अजद ॥ निरुज थ ते कन्यका, फल्यो नियम प्रत्यद ॥४॥ जोवन आवी जाणीने, नृप विवाह निमित्त ॥ पट्ट अनेक देखामीया, कोश न आव्यो चित्त ॥५॥