Book Title: Dharm Parikshano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 310
________________ धर्मपरी खंग ॥१५ ॥ ढाल पांचमी. सुमला संदेशो कहे मारा पूज्यनेरे, मानीश तुज उपगाररे-ए देशी. एहवे अंगदेशनो धणीरे, नवदत्त नामे नूपालरे ॥ जीतारि नृप प्रते एम कहेरे, मुजशु करो विवसालरे ॥ ए०॥ १॥दासीना पुत्र तुज केम देरे, जाति हीण मनमा जाणरे ॥ राजकन्या जोग ए केम होयेरे, बोलजे विमासी वाणरे ॥ ए॥२॥ नवदत्त कहे जाति शुं करेरे, जो मांहि गुण नवि होयरे ॥ गुणने आदर सहु करेरे, जाति न माने कोयरे ॥ ए० ॥३॥ गुणवंत तो पिण तुज नणीरे, कन्या केम देवायरे ॥ जो लाखिणी तोपण वाणहीरे, तेहिज पेहेरवी पायरे ॥ ए० ॥४॥ राज्य तणी करे कामनारे, तो पुत्री परणावरे ॥ नहिंतर बेवे लेयशुरे, मुज वचन मन लावरे ॥ ए॥५॥ जीतारि कहे जीतशेरे, संग्रामे मज जेहरे ॥ मजयी श्रधिको जे होशेरे, कुंवरी पति गणे तेहरे ॥ ए० ॥६॥ घर भावी सेना सजीरे, जव चाले न-IN वदत्तरे ॥ राणी कहे तिणे अवसरेरे, एक सुणो प्रजु वत्तरे ॥ ए ॥ ७॥ कन्या काजे कलह किशोरे, सरखे कुले विवाहरे ॥ नृप कहे वचन जीतारिनुरे, कारण क|रण उच्छाहरे ॥ ए ॥ ७ ॥ नवदत्त आव्यो उतावलोरे, अरिनी सीम नजीकरे ॥ ॥१५॥

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