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धर्मपरीचित्त चिंतके, राजा जुर्ड राय एम करतरे। तो कहीए केहने जइ, राजा सुणजो सर्व जन जखम
संतरे ॥ १५ ॥ राजा आगल श्रावीने, राजा चोर न साध्यो खामरे । कोपे करी ॥१३॥
राय एम कहे, राजा एहने मारो तस ममरे ॥ २० ॥ मसी महाजन विनवे, राजा अवध दीजे दिन सातरे ॥ चोर वस्तु आणे नहीं, राजा मनमानी करजो वातरे॥१॥ कष्टे भूपे कयु कयु, राजा परजानु राख्यु मन्नरे ॥ यमदंड सहु धागल कहे, राजा सुणजो एक वचनरे ॥ २५ ॥ राजानुं मन एहवं, राजा कहोने हवे कीजे केमरे ॥ महाजन कहे बीजो रखे, राजा न्यायीने थाशे खेमरे ॥ २३ ॥ परमेश्वर पद न्यायनो, राजा करशे सही जाणो साचरे ॥ ढाल बीजी खंग सातमे, राजा नेमविजयनी वाचरे ॥२४॥
उदा. । शठपणे सघले फरे, चोर गवेषण काज ॥ पहेले दिवस सन्ना गयो, तव पूढे महा-| १३४॥ राज ॥१॥ चोर न लाव्यो चोरटा, जमदंम कहे नरनाथ ॥गम गम में जोश्यो, चोर न श्राव्यो हाथ ॥ २॥ एवमी वार किहां रह्यो, कहे कोटवाल ते वार ॥ कथा