Book Title: Dharm Parikshano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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दिक मागीरे,हुश्रा बहु रागी जिन विण थर नहींरे ॥ तुं तो जुधारीरे, सात व्यसअननो धारीरे, केणी परे अविचारी पामशे एहनेरे ॥ ७॥ बोले अहंकारीरे, जो जो
मति मारीरे, न परj ए नारी तो कहेजो पशुरे ॥ चाल्यो पर छीपेरे, एक साधु समीपेरे, सघली विधि दीपे जेम श्रावक शिशुरे ॥ ७॥ फरी श्राव्यो वेगेरे, मनने उद्वेगेरे, देहरे संवेगे श्रावी पूजा करीरे ॥ गाये गीत रसालरे, चोखी कहे ढालरे, देखी धनपाल पूछे उलट धरीरे ॥ ए॥ किहांथी तुमे श्राव्यारे, कोण जाते कहाव्यारे, मनमां बहु नाव्या वाणारसी नयरे वसुंरे ॥ माबापे कालरे, कीधो अकालरे, ब्राह्मण दयाल अर्बु कहुं केशुंरे ॥ १०॥ धीरज मन धरतारे, तीरथ जात्रा करतारे, एणी परे फरतां एक दिन मुनिवर मल्योरे ॥ तेणे नाख्यो धर्मरे, जेहथी शिव शर्मरे, सुणी जिनधर्म मुज मिथ्या मत टस्योरे ॥११॥ चैत्यवंदन काजरे, आव्यो श्हां आजरे, अवधारो महाराज शेठ कहे अशुंरे ॥ घर श्रावो देवरे, करशुं तुम सेवरे, सोमा ततखेव तुजने परणावगुंरे ॥ १२ ॥ विष सरी-10 खी वामरे, तेहशुं नहीं का
मरे, तेवशं नहीं कामरे, तस बीजे नहीं नाम ग एम कढेरे॥ श्राग्रहशति कीधरे, जाएयु कारज सीधरे, परणीने परसीध संधा निरवहीरे ॥१३॥ जुवारी जेथरे,

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