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खंग ७
धर्मपरीबिंब देखीएं, पमजणे शत उपवास ॥ स० ॥ सहस्र फल विलेपने कह्यो, फुलमा-
लाए लाख फल तास ॥ स० सं० ॥ १० ॥ अनंत फल गीत नृत्यथी, एहवां फल ॥१३॥
सुणी शेठे तास ॥ स ॥ नीम धार्यो त्रण कालनो, जिनपूजा विना उपवास K स० सं० ॥ ११ ॥ श्राव्यो उबव एहवे, कौमुदी कौतिककार ॥ स० ॥ सुंदर वेश
सजी सवे, नगर बहार थावे नर नार ॥ स० सं० ॥ १२ ॥ खेलो हसो मन खांतशें, हुकम करे राजान ॥ स० ॥ कार्तिक पुनेमने दिने, गाउँ वजाउँ तान ॥ स० सं० ॥ ॥ १३ ॥ बार वरसने अंतरे, पमहो वजामे एम ॥ स ॥ अर्हदास शेठ मन चिंतवे, मुज व्रत रदेशे हवे केम ॥ स सं० ॥ १४ ॥ उडुं मनमां बालोचीने, आव्यो शेयर नृपने पासे ॥ स ॥ मोती बागल मूकीने, उनो अरज करे उल्लासे ॥ स० सं० ॥ ॥ १५ ॥ में लीधुं ने व्रत नेम जे, ते तुमे जाणो बो वाम ॥ स ॥ आज श्रादेश हुवो एसो, केवु कर हवे काम ॥ स० सं० ॥ १६ ॥ धन देश धन धन कही, ए तो घणुं प्रशंसे राज ॥ स० ॥ जिनधरमी जयवंत तुं, करो जश् घरनां काज ॥ स सं० ॥१७॥चोकी मेली चिहं दसे, ए तो सुजट रह्या सावधान ॥स०॥ रात |पमी राजा कहे, ए तो सांजल तुं परधान ॥ स० सं० ॥ १७ ॥ पहेली ढाल खंग
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