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धर्मपरी
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जो अनिने ॥मा॥१६॥ उंची दृष्टि हो जोयुं जाम॥मा॥पीबी कमंगल हो दी तामा खंग३
मा॥ जतन करीने हो बांध्यां ने जेह॥मा हस्ते करीने हो उतार्यां तेह ॥माण॥॥ मन मांहीं हो विचार्यु एहर्बुमा॥ वस्त्र विहुणा हो करशु केहेकुंमा॥श्रावक सुतने हो जाचुं अहीं केम ॥मा पीबी कमंगल धरीयां तेह ॥मागारमा गुरुजी पाखे हो दीदा में लीध ॥मा॥ देश विदेशे हो विहारज कीध मा॥ पाटलीपुरमांहोश्राव्यो ढुं आज ॥मा कथा कही बेहो में मूकी लाज॥मा॥रणा संबंध कथानोहो कह्यो जे एह ॥मा॥ हिजवर वातो हो विचारो तेह ॥ मा० ॥ साचां वचन हो कह्यां ने अमो॥ मा० ॥ खोटां वचन हो म करशो तमो ॥ मा० ॥२०॥ खंग त्रीजानी हो ढाल कही त्रीजी ॥ मा॥
हो करे जो जीजी ॥ मा० ॥रंगविजयनो हो शिष्य एम बाल ॥मा नेमविजयने हो नहीं कोई तोले ॥ मा ॥१॥
उदा. विप्र वचन तव बोलीया, सांजलरे अजाण ॥ जूठो किमही न बोलीए, कलि केमा उगे जाण ॥१॥ खोटां वचन तमे उचाँ, दीसो बोरे लबाम ॥ डिंग मोल्यां ने श्रणघड्यां, तुमे धूरत महा थाम ॥२॥ कमंगल मांहीं मयगल तुमो, पेग बो एह ||
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