________________
ग्रही॥ मा०॥१३॥ मा०॥ जिनशासननानेद, शास्त्र सिद्धांत विचारीए ॥मा० ॥
माला वीतराग देव बाराध, जैन वाक्य हृदय धारीए॥ मा॥रामा ॥श्री हीरविजय सूरिराय, शुजविजय शिष्य तेहना ॥ मा० ॥मा०॥ नाव विजय शिष्य तास, सिफिविजय शिष्य एहना ॥ मा० ॥ १५ ॥ मा० ॥ रूपविजय सही एह, शिष्य कह्या जाणो सही
मा॥ मा॥कृष्ण विजय कति मांहीं, शिष्य नाम धराव्यो मही ॥ मा॥१६॥मा रंगविजय रंग लाय, शिष्य कहीए जगमें जदा ॥मा॥ मा ॥ नेमविजय शिष्य नाम,
नित्य उदय होजो तदा ॥ मा ॥१७॥ मा॥ एह संसारमा सार, धर्मपरीदा जाणीए aluमा ॥ मा॥ मिथ्या मत तणो ध्वंस, त्रीजो अधिकार मन आणीए ॥ मा ॥१॥
मा० ॥त्रीजो प्ररोथयो खंम, ढाल श्रावे प्ररण करी॥मा०॥ मा०॥नेमविजय कहे लानित्य, गुरुनु नाम हृदय धरी ॥मा० ॥ १५॥
इति श्रीधर्मपरीक्षायां मिथ्यादेवशास्त्रपुराणगुरुयूषण नामा तृतीयोऽधिकारः
-