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धर्मपरी
॥१०॥
जपे हे तरुवर जणी एम के ॥ कहो मुजने तुम इहां रह्या, केम मलशे हे सीता मुज जेम के ॥ सु० ॥ ॥ तरुवर वाये मोलतां, राम जाणे हे कहे धुणीने शीश के ॥ श्रमे न जाणुं किहां गश्, एम धारी हे मुजने करे रीस के ॥ सु०॥ ए॥ तव केकी पंखी प्रते, राम बोले हे तुमे उमो आकाश के ॥ सीता माहरीनी वातमी, बतावो हे हुँ श्रापुं शाबाश के ॥ सु॥१०॥ तव पंखी बोले मुख थकी, क्यां वा क्यां वाहे न जाणुं श्रमे आप के ॥ राम जाणे ए जे कहे, किम खोवे हे आपनो माप के ॥ सु० ॥ ११ ॥ पशु चोपगने पूढे वली, जातां वलतां हे दीठी सीता नार। के ॥ शियाल बोल्यां ततदणे, सांजलीने हे रामे कीधो विचार के ॥ सु ॥ १५॥ जंजं जे मुखथी कहे, ले जातां हे न दीठी जण गण के ॥ लक्ष्मण राम जणी कहे, जंजालनां हे बोलो मुख वाण के ॥ सु० ॥ १३ ॥ जा तुमने केम घटे, स्त्री माटे हे श्यो करो वेखास के ॥ जो विद्यमान बेग तुमे, काले लावणुं हे राखो विश्वास के ॥ सु० ॥ १४ ॥ रोयां राज न पामीए, राखो धीरज हे आवे श्रापण लाज
॥१० के ॥ लाजे काज बगाडीए, ना तुमने हे केम घटे श्राज के ॥ सु०॥ १५॥धीरा धीरा राउता, धीरां धीरां हे सर्वे काज होय के ॥ चार पहोरने यांतरे, पूध फीटी
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