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___ढाल सातमी.
शियालो हे जले श्रावीयो-ए देशी. सीता दीठी एकली, चिंतवे मन मांही रावण विचार के ॥ कोश्क बुद्धि हवे केल, जेम श्रावे हे माहरे हाथे नार के ॥ सुगुण सोनागी सांजलो ॥ ए श्रांकणी ||॥ १॥ अतित रूप करी अति जलो, निदा कारण हे श्राव्यो ततकाल के ॥ अलेक जगाव्यो श्रांगणे, सीता श्रावी हे उनी उजमाल के ॥ सु॥२॥ केम स्वामि तुमे || श्रावीया, तव जोगी हे बोले मुख वाण के॥ताहरे पीयु मने मोकट्यो, तेमवा श्राव्यो हे तुमने तिण गण के ॥ सु० ॥३॥ लश्कर श्राव्यो बे घणो, को कुश्मन हे तुमने ले जाय के ॥ ते माटे उतावलां, तुमे बेसो हे या विमान मांय के ॥ स॥ ly सीताए जाएयु ए सही, मांहे बेग हे उघाड्युं विमान के॥आगल जातां सामो मिल्यो, विद्याधर हे एकलो तेणे स्थान के ॥ सु० ॥५॥पूब्युं रावणने तिहां, कुण नारी हे के-1 हनी कदेवाय के ॥ तक रावण कहे रामनी, सीता नारी हे कहेजे ले जाय के ॥ सुपू ॥ ६॥ ते विद्याधरे रामने, संजलावी हे सीतानी वात के ॥ रामने लक्ष्मण बे मली, कुःख पाम्या हे कहेतां नावे घात के ॥ सु० ॥७॥ राम रोश् घणुं टलवले, मुख |