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परोपकार
जो वचन और मन से
भले
भलाई करने में लगा रहता है योगयुक्त रहता है वही परम पद की प्राप्ति करता है । तुलाधार ने जाजलि ऋषि से यों कहा
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प्रकार और सदा दूसरं की
तथा जो तपस्या, तथा जो तपस्या, त्याग और
वेदाहं जाजले ! धर्मं सरहस्यं सनातनम् । सर्वभूतहितं मैत्रं पुराणं यं जना विदुः ॥ ५ ॥ सर्वेषां यः सुहृन्नित्यं सर्वेषाञ्च हिते रतः । कर्मणा मनसा वाचा स धर्म वेद जाजले ! ॥
महाभारत शान्तिपर्व, अध्याय २६१
हे जाजलि ! मैं सनातन धर्म के गुप्त भेद को जानता हूँ जो सब प्राणियों की भलाई करना और सब का मित्र बना रहना है, इसी को लोग पुराय करके जानते हैं ।
हे जाजलि ! जो सदा सब का मित्र बना रहता है और मन, वचन और कर्म से जो सब का हित करने में तत्पर रहता है, वही धर्म को जानता है ।
लिखा है
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देही ।
तेही ॥
चौ० ० -- परहित लागि तजे जो संतत संत प्रसंसहि परहित वस जिनके मन माहीं । तिन कहँ जग दुर्लभ कछु नाहीं ॥