Book Title: Dharm Karm Rahasya
Author(s): Indian Press Prayag
Publisher: Indian Press

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Page 155
________________ मृत्यु की परावस्था १३८ और छाया-शरीर में भी अठारहवें वर्ष में आनेवाली व्याधि का वीज इस परिमाण से रख दिया जायगा कि वह परिपक्व होकर ठीक उसी समय में उक्त व्याधि प्रकट करेगा जो केवल आवश्यक अवधि तक रहेगी । 9 पूर्व-जन्म के कर्म, भावना और भाव सङ्कल्पादि के कारण जैसी अवस्था और आन्तरिक योग्यता प्राप्त होती है उसी के अनुसार शरीर, बल, सामर्थ्य और उसी प्रकार बाहरी सामान अर्थात् धन, रूप, मकान, कुटुम्ब -परिवार, वाहन इत्यादि ( पूर्व जन्म के कर्मानुसार ) मिलते हैं। पूर्व जन्म में यदि किसी मनुष्य ने दुःखियों को अन्न, वस्त्र, औषध इत्यादि देकर सुख दिया और धर्मशाला, तड़ाग, कुआँ, सड़क इत्यादि वनवाकर सर्वसाधारण को सुखी किया है तो दूसरे जन्म में अवश्य सुख देनेवाली व्यवस्था में सुखद सामग्री के साथ उसका जन्म होगा और पूर्व जन्म में दूसरों के सुखी करने के कारण उसको भी अवश्य सुख मिलेगा। यदि कोई परोपकारी काम, जैसे चिकित्सालय, धर्मशाला इत्यादि बनवाने में वह स्वार्थ की दृष्टि से (जैसे यश पाना, सरकार से उपाधि पाना, इत्यादि में ) प्रप्त हुआ होगा और उत्तम भावनाओं का उसमें अभाव था तो दूसरे जन्म में वह धनी अवश्य होगा और सुख के सामान तो ऐसे पुरुष को अवश्य मिलेंगे किन्तुः आन्तरिक योग्यता और सद्गुण उसमें न होंगे। वह मन्दबुद्धि होगा, स्वार्थी होगा; और स्वार्थपरायण तथा धन से

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