Book Title: Dharm Karm Rahasya
Author(s): Indian Press Prayag
Publisher: Indian Press

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Page 156
________________ १४० धर्म-कर्म-रहस्य मदान्ध होकर यदि उस जन्म में दुखियों की दीनदशा देख उन पर दया न करेगा (जैसी कि प्राय: ऐसे लोगों की दशा होती है ) और उनकी सहायता न करेगा तो उसके बाद के जन्म में वह दरिद्र होगा। तब वह अपने अनुभव से जानेगा कि दुःख क्या है, जिसका ज्ञान होने पर वह दुःखियों पर दया करना सीखेगा। यदि कोई किसी उत्तम मानसिक कर्म में (यथा उत्तम उत्तम ईश्वरसम्बन्धी भावनाओं के सोचने में) सदा प्रवृत्त रहता है, किन्तु शरीर से किसी का उपकार नहीं करता, अर्थात् दूसरों को भोजन, वस्त्र, रोग-विमोचन आदि कर्म अथवा उपदेश द्वारा किसी प्रकार शारीरिक सुख नहीं देता है वो ऐसा व्यक्ति दूसरे जन्म में आन्तरिक योग्यता तो बहुत ऊँची श्रेणी की पावेगा और ज्ञानवान् चरित्रवान् सज्जन पण्डित होगा किन्तु वाह्य सुख-सामान की उसे कमी रहेगी। परन्तु ऐसा दरिद्र सज्जन पण्डित इस स्वार्थी और मन्दबुद्धि धनी से अवश्य बहुत उत्तम है; क्योंकि उस धनी का, स्वार्थपरायण होने के कारण, उसके बाद का जन्म बुरा होगाअर्थान् वह दरिद्र होगा और धनी रहने की अवस्था में भी स्वार्थ-लोलुप होने के कारण और विषयवासना के वर्तमान रहने के कारण यथार्थ दुःखी ही वना रहेगा। किन्तु निर्धन पण्डित अपनी आन्तरिक श्रेष्ठ योग्यता और सद्गुण के कारण प्रत्येक जन्म में यथार्थ उन्नति करता जायगा और विशेष रूप से ईश्वर-मुख होता जायगा और अन्त में ईश्वरप्राप्ति करेगा जो कि जीवन का मुख्य लक्ष्य है

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