Book Title: Dharm Karm Rahasya
Author(s): Indian Press Prayag
Publisher: Indian Press

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Page 160
________________ १४४ धर्म-कर्म-रहस्य दूसरे के साथ बँधा रहता है ॥ ७५ ।। जैसे सहस्रों गौत्रों में भी बछड़ा अपनी माता ही के निकट पहुँच जाता है वैसे ही पूर्वजन्म-कृत कर्म कर्ता के ही निकट जाता है ॥ १६ ॥ इस जन्म में पञ्चेन्द्रिय द्वारा सतत किये हुए कर्म. का फल कभी नष्ट नहीं होता, पञ्चेन्द्रिय और छठा आत्मा सर्वदा उसके साक्षी होते हैं ।। ७ ।। और भी नामुक्त क्षीयते कर्म कल्पकोटिशतैरपि । अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाऽशुभम् ॥३६॥ शुभाशुभं च यत्कर्म विना भोगान्न च क्षयः। भोगेन शुद्धिमाप्नोति ततो मुक्तिर्भवेन्वृणाम् ॥४०॥ ब्रह्मवैवर्त, कृष्णजन्म खण्ड, उत्तरार्द्ध अध्याय ८४ बिना भोगे कर्म सौ कोटि कल्प के वीतने पर भी नष्ट नहीं होता, किये हुए शुभ और अशुभ कर्मों का फल अवश्य भोगना पड़ता है ॥ ३६ ।। शुभ और अशुभ कर्म विना भोगे नष्ट नहीं होते, उनको भोग के पवित्र होता और तव मनुष्य की मुक्ति होती है।॥ ४० ॥ कर्म का फल सवको होता है। लिखा है पूर्वदेहकृतं कर्म शुभ वा यदि वाऽशुभम् । प्राज्ञो मूढस्तथा शूरः भजते यादृशं कृतम् ।।४९॥ महाभारत, शान्तिपर्व, अध्याय १७४ पूर्व-जन्म में जैसा शुभ अथवा अशुभ कर्म किया हुआ रहता है वैसे ही फल विद्वान, मूढ़ और शूर पाते हैं। क्योंकि

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