Book Title: Dharm Karm Rahasya
Author(s): Indian Press Prayag
Publisher: Indian Press

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Page 183
________________ उपसंहार · नाना प्रकार की स्वार्थ- कामना, विषय-भोग की वासना इत्यादि के कारण कर्म की प्रत्यन्त वृद्धि होती है, क्योंकि वासना ही जन्म-मरण का यथार्थ कारण है / वासना में एक विचित्रता यह है कि इसकी पूर्ति कदापि नहीं होती, वरन् एक की पूर्ति होने से उसके बाद दस की उत्पत्ति होती है । जैसा कि अग्नि में घी के देने से अग्नि शान्त न होकर बढ़ती है, वही दशा तृष्णा की है [ आनन्द की चाह करना और दुःख से निवृत्त रहना सबका आन्तरिक स्वभाव है किन्तु शोक है कि कर्म के तत्त्व का ज्ञान न रखकर हम लोग वही कर्म करते हैं जिससे दुःख मिलेगा और दुःख की निवृत्ति तथा यथार्थ सुख की प्राप्ति के कर्म की अवहेला करते हैं। आश्चर्य यह है कि ऐसा करने पर भी चाह सुख ही की रखते हैं, दुःख की नहीं । यही अज्ञान है । कहावत है कि " रोपे पेड़ बबूल का आम कहाँ से होय" । लोगों का यथार्थ कल्याण इसी में है कि न तो किसी दुष्ट वासना और भावना को चित्त में आने दें और न कोई अनुचित कर्म करें किन्तु शुभ भावना और शुभ कर्म के सम्पादन में और ज्ञान की प्राप्ति में सदा निरत रहें । यथार्थ में मनुष्यजीवन परम दुर्लभ है और कर्म, बन्धन का कारण न होकर, हम

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