Book Title: Dharm Karm Rahasya
Author(s): Indian Press Prayag
Publisher: Indian Press

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Page 159
________________ कर्म-फल अनिवार्य जो कुछ कर्म किये जाते हैं वे व्यर्थ नहीं होते; कर्ता को उनका फल अवश्य भोगना पड़ता है। जैसा कर्म किया जाता है वैसा फल मिलता है। जिस फल के पाने का कर्म किया नहीं गया वह फल मिल नहीं सकता। ऐसा कुछ भी किसी को नहीं हो सकता जो कि उसके किये हुए कर्म का फल न हो, अतएव अवश्य होनेवाला न हो और ऐसा जानकर लोगों को सदा सन्तुष्ट और निर्भय रहना चाहिए। लिखा है यथा छायातपा नित्यं सुसम्बद्धो निरन्तरम् । तथा कर्म च कर्ता च सम्बद्भावात्मकर्मभिः ।।७।। महाभारत, अनुशासनपर्व अध्याय १ यथा धेनुसहस्र पु वत्सा विन्दति मातरम् । तथा पूर्वकृतं कर्म कर्तारमनुगच्छति ॥१६॥ वही, अध्याय १८१ न नश्यति कृतं कर्म सदा पञ्चन्द्रियैरिह । ते द्यस्य साक्षियो नित्यं पष्ठ आत्मा तथैव च ॥७॥ वही, अध्याय ७ जैसे छाया और पाम सदा एक दूसरे के साथ रहता है उसी तरद कर्म और उसका कर्ता, कर्म किये जाने के कारण, एक

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