Book Title: Dharm Karm Rahasya
Author(s): Indian Press Prayag
Publisher: Indian Press

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Page 177
________________ दुःख-मित्र स्थिति होने से मिलता है, सात्विक सुख है। जो सुख इन्द्रिय के विषय के संयोग से प्राप्त होता है और भोगकाल में अमृत के समान सुखद है, किन्तु परिणाम में विष के समान दुःखद है वह राजसिक सुख है। जो सुख प्रारम्भ और अन्त दोनों कालों में मोह का करनेवाला है और निद्रा, आलस्य तथा प्रमाद ( अज्ञान ) से उत्पन्न है वह तामसिक सुख है। हम लोगों को तामस और राजस सुख को हानिकारी जान, त्यागकर, केवल सात्विक सुख की प्राप्ति में यत्नवान और प्रवृत्त होना चाहिए। बुरे कर्म का अन्ततः अवश्य बुरा परिणाम होता है और उससे हानि और दुःख अवश्य मिलते हैं । अनिश्चित, स्वल्प और संदिग्ध फल के लिये दुष्ट कर्म करके पीछे बहुत बड़ो विपत्ति में पड़ना वड़ी मूर्खता है। अतएव सदा उत्तम भावना के चिन्तन में, उक्त कर्म के सम्पादन में और ईश्वर के प्रोत्यर्थ लोक-हित कर्म को श्रद्धा और निष्काम भाव से करने में प्रवृत्त रहना चाहिये। . दुःख-मित्र दुष्ट कर्म के दुःख और क्लेश रूपो फल इसी लिये दिये जाते हैं कि जीव दुःख पाकर सचेत हो जाय और उस दुःख के अनुभव को प्राप्त कर उसका कारण दुष्ट कर्म और उससे अवश्य होनेवाले बुरे परिणाम को समझ जाय, और तब ११

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