Book Title: Dharm Karm Rahasya
Author(s): Indian Press Prayag
Publisher: Indian Press

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Page 166
________________ १५० धर्म-कर्म-रहस्य तदनुसार ही आगामी जन्म में उसकी अवस्था होगी। आगामी जन्म में वह जैसा होना चाहता हो वैसा कर्म अभी उसको करना चाहिए और तब वह वैसा अवश्य होगा। किन्तु इस नियम को न जानकर, प्राय: लोग क्रियमाण कर्म द्वारा अपनी भविष्यत् की अवस्या के उत्तम बनाने का यन न करके, क्रियमाण को केवल वर्तमान अवस्था की उन्नति करने में लगाते हैं। इस जन्म की वर्तमान अवस्था से सन्तुष्ट न हो केवल इसी जन्म में विशेष धनी और सुखी होने के यन में प्रवृत्त होते हैं। क्रियमाण कर्म को वर्तमान अवस्था की ही उन्नति के वन में लगाते हैं और भविष्यत् की उन्नति के विषय में कहते हैं कि "प्रारब्ध में होगा तो धर्म करेंगे. प्रारब्ध स्वतः करवा देगा। परिणाम यह होता है कि क्रियमाण कर्म, जिसके द्वारा हम लोग अपनी भविष्यत् उन्नति कर सकते हैं, प्रायः व्यर्थ हो जाता है क्योंकि उसको केवल वर्तमान जन्म की अवस्था की उन्नति में लगाते हैं जो प्रारब्ध-कर्मानुसार होने के कारण क्रियमाण से बहुत कम-सुधर सकता है, किन्तु उस क्रियमाण कर्म द्वारा जो भविष्यत् की अवस्था अवश्य उत्तम बनेगी वह नहीं की जावी । अतएव हम लोगों के पुरुषार्थ और अध्यवसाय, ठोक मार्ग के अनुसरण न करने के कारण, निष्फल हो जाते हैं। हम लोगों को चाहिए कि प्रारब्ध-कर्म के फल को धैर्य से भोगे, उसके परिमार्जन के निमित्त आवश्यक पुरुषार्थ अवश्य करें और कर्तव्यपालन में शिथिलता कदापि न करें किन्तु भविष्यत् की

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