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देव और पुरुपकार
१५३ शूली पर चढ़ना था जो वर्तमान जन्म के तीन उत्तमाचरण के कारण हास होकर पैर में चोट पाने तक हो गया। यह अटल नियम है कि अधर्म और अनुचित फर्म करने पर यदि कुछ लाम इस लोक में हो भी तो उमसे प्रायः हज़ारों गुणा अधिक हानि भविष्यत् में भोगनी पड़ती है जैसा कि अभी पांच सौ रुपया कर्जा लेकर भविष्यत् में उसके सूद दर सूद हरजा आदि के साथ पांच हजार रुपये को बड़े कष्ट से भुगतान करना। अतएव ऐसी अदूरदर्शिता का व्यवहार परम मूर्खता
और अक्षता का परिणाम होने से लाभकारी होने के बदले परम दानिकारी है जिसका त्याग अवश्य करना चाहिए। बुद्धिमान वही है जो किसी कार्य के भविष्यन् परिणाम को समझकर ही कार्य करता है और तत्काल के लाभालाम को भी भविष्यत् की दृष्टि से देखता है
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देव और पुरुपकार प्रारब्ध कर्म के सिद्धान्त का यह तात्पर्य नहीं है कि इसके विश्वास करनेवाले प्रारब्ध के भरोसे रहकर पुरुषार्थ न करें और आलसी तथा अकर्मण्य बन जावें। बीमार होने पर रोग को निवृत्ति की चेष्टा न करे, भूख लगने पर भोजन की प्राप्ति का प्रबन्ध न करे, जीविका के लिये अर्जन न करे। ऐसा कदापि नहीं। प्रारब्ध अर्थात् दैव भी पूर्वजन्मार्जित कर्म का