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________________ परोपकार जो वचन और मन से भले भलाई करने में लगा रहता है योगयुक्त रहता है वही परम पद की प्राप्ति करता है । तुलाधार ने जाजलि ऋषि से यों कहा ३३ प्रकार और सदा दूसरं की तथा जो तपस्या, तथा जो तपस्या, त्याग और वेदाहं जाजले ! धर्मं सरहस्यं सनातनम् । सर्वभूतहितं मैत्रं पुराणं यं जना विदुः ॥ ५ ॥ सर्वेषां यः सुहृन्नित्यं सर्वेषाञ्च हिते रतः । कर्मणा मनसा वाचा स धर्म वेद जाजले ! ॥ महाभारत शान्तिपर्व, अध्याय २६१ हे जाजलि ! मैं सनातन धर्म के गुप्त भेद को जानता हूँ जो सब प्राणियों की भलाई करना और सब का मित्र बना रहना है, इसी को लोग पुराय करके जानते हैं । हे जाजलि ! जो सदा सब का मित्र बना रहता है और मन, वचन और कर्म से जो सब का हित करने में तत्पर रहता है, वही धर्म को जानता है । लिखा है - ३ देही । तेही ॥ चौ० ० -- परहित लागि तजे जो संतत संत प्रसंसहि परहित वस जिनके मन माहीं । तिन कहँ जग दुर्लभ कछु नाहीं ॥
SR No.010187
Book TitleDharm Karm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndian Press Prayag
PublisherIndian Press
Publication Year1929
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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