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धर्म-कर्म-रहस्य दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध है। यदि उचित रीति से शौचधर्म का पूरा पालन किया जाय तो मन की पवित्रता के सिवा शरीर स्वस्थ, नीरोग और सबल रहेगा और संक्रामक आदि अनेक व्याधियों से लोग वचे रहेंगे।
इन्द्रिय-निग्रह छठा धर्म इन्द्रिय-निग्रह है। इन्द्रियों को अपने वश में रखना, उनको निन्दित विषयभोग की ओर नहीं जाने देना
और उनको सदा कर्त्तव्य (धर्म ) पालन में प्रवृत्त रखना इन्द्रिय-निग्रह है। किसी न किसी इन्द्रिय की निकृष्ट आसक्ति के निमित्त मनुष्य अधर्म करता है । अतएव जब तक इन्द्रियाँ वश में न होगी तब तक अधर्माचरण रुक नहीं सकता। मनु भगवान का वाक्य है
इन्द्रियाणां प्रसङ्गेन दोपमृच्छत्यसंशयम् । संनियस्य तु तान्येव ततः सिद्धि नियच्छति ॥१३॥
मनुस्मृति, अध्याय २ इन्द्रियों के दुष्ट विषयों में लगने से निस्संदेह हष्ट अष्ट दोष को प्राप्त होता है किन्तु उन्हीं इन्द्रियों को भली भाँति वश में करने से सिद्धि की प्राप्ति होती है। सव इन्द्रियों को वश में करने की चेष्टा करनी चाहिए, क्योंकि एक के भी अवश रहने से अनर्थ होता है। लिखा है