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वालकों का ब्रह्मचर्य यह प्रकरण वालकों के इन्द्रिय-निग्रह अर्थात् ब्रह्मचर्य की रज्ञा की चर्चा विना अवश्य अपर्याप्त रहेगा, क्योंकि ब्रह्मचर्याअम प्रथम आश्रम होने के कारण सब आश्रमों का मूल है। यदि बालकों में ब्रह्मचर्य की रक्षा न होकर मूल नष्ट हो गया तो अन्य आश्रम, जो शाखा की भाँति हैं वे, भी नष्ट-प्राय ही होंगे। आजकल यही देखा जाता है। लोग सर्वत्र उन्नति, सुधार, स्वतन्त्रता आदि की चिल्लाहट करते हैं किन्तु सब उन्नतियों का मूल कारण जो सब आश्रमों में, विशेष कर वालकों में, ब्रह्मचर्य का पालन है उसकी और तनिक भी ध्यान नहीं दिया जाता है। इस ब्रह्मचर्य के हात' से देश में सर्वत्र दुर्दशा फैली हुई है और इसके सुधार से सव सुधार खतः सहज में हो जायँगे। तभी यह अधःपतित देश फिर अपना पूर्व गौरव प्राप्त करेगा। बाल-विवाह तो ब्रह्मचर्य का सर्वनाश कर हो रहा है किन्तु इसके सिवा बालकों में, विद्यार्थियों में और युवकों में भी, आजकल अनेक प्रकार के अस्वाभाविक मैथुन, अविहित मैथुन, अपरिमिव मैथुन, अमानुषी मथुन और कुष्टि, दुष्ट भावना, अनुचित वार्तालाप, अश्लील चर्चा, कुत्सित उपन्यासादि पुस्तक का अवलोकन, थियेटर आदि के श्य द्वारा जो अनेक प्रकार के