________________
बालकों का ब्रह्मचर्य , वन्दना के कारण केवल उनके पग को देखते थे; उन्होंने दूसरे
अङ्ग पर कदापि दृष्टि नहीं दी और इसी कारण वन में सीताहरण के बाद उनके गिराये हुए आभूषणों में केवल पग के आभूषण को छोड़कर वे अन्य आभूषण को नहीं पहचान सके। फिर जब श्रीलक्ष्मणजी श्रीसीताजी को श्रीवाल्मीकि महर्षि के आश्रम पर, भाई के प्राज्ञानुसार त्यागकर लौट रहे थे, उस समय श्रीमहारानीजी ने उन्हें अपने शरीर के गर्भचिह्न को देखने के लिए कहा ताकि पीछे इसका भी अपवाद न हो। उत्तर में श्रीलक्ष्मणजी ने इस आवश्यक देखने के भी इनकार में यों कहा. दृष्टपूर्व न ते रूपं पादा दृष्टौ तवानधे । कथमत्र हि पश्यामि रामेण रहितो वने ॥ २२॥
वाल्मीकि रा० उत्तर का० अ० ५६ इसके पूर्व मैंने सिवा पग के आपका अन्य भाग कभी नहीं देखा। इस कारण जब कि इस समय यहाँ वन में श्रीरामचन्द्रजी नहीं हैं, मैं कैसे देख सकता हूँ? श्रीलक्ष्मणजी के इस चरित्र और भाव का अनुकरण विद्यार्थियों को अवश्य करना चाहिए और श्रीहनुमानजी, श्रीभीष्म, श्रीशुकदेव, सन
* नाहं जानामि केयूरे, नाहं जानामि कुण्डले । ' नूपुरे त्वभिजानामि, नित्य पादाभिवन्दनात् ॥ .
वाल्मीकि रामायण