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धर्म-कर्म-रहस्य नहीं है जिसको किसी प्रकार का कष्ट अथवा अभाव कभी नहीं । हुआ। अर्थात् सुखदुःख सबके लिये.साधारण घटना है। धैर्य से सांसारिक लाभ भी है। जो कष्ट आने पर धैर्य नहीं रखते, उनके कष्ट की तीव्रता बढ़ जाती है, उनकी बुद्धि ठीक नहीं रहती और उचित कार्य करने की क्षमता का ह्रास हो जाता है। अतएव वे कष्ट निवारण अथवा हास करने के कार्य में सफल नहीं होते किन्तु धैर्यवान् सफलता लाभ करता है। धीर को ज्ञान के कारण कष्ट आने पर अभ्यन्तर में कष्ट ही नहीं होता और वह अन्तर से प्रसन्न ही रहता है।
सुख और दुःख दोनों से क्षुभित न हो दुःख और कठिनाई के आने पर उसको दुःख और कठिनाई ही न समझे और तनिक भी विचलित न हो। सुख और दुःख तो मन का भाव है। कोई प्रभाव के न रहने पर भी भावना के कारण मनुष्य दुःखी रहता है और उसी प्रकार एक परम दरिद्र. भी ज्ञान के वल से चक्रवर्ती राजा से अधिक सुख अनुभव कर सकता है। धीर यदि कठिनाई के आने पर आत्मा की दृष्टि से उसे तुच्छ समझकर धैर्य से उसके टालने के लिये बढ़ सङ्कल्प करेगा, तो इसके द्वारा उसको वहुत कुछ टाल भी सकता है। यह धैर्य-मार्ग कायरता नहीं है किन्तु वीरता है और सव कठिनाइयों को दूर करनेवाला है। इसके अवलम्ब से मनुष्य बड़ी उन्नति कर सकता है;