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विष-उपविषोंकी विशेष चिकित्सा-"भिलावे"। ८१ "तिब्बे अकबरी में लिखा है, भिलावे खानेसे मुख और गलेमें फफोले हो जाते हैं, तेज़ रोग, चिन्ता, भड़कन और अङ्गोंमें तकलीफ होती है । भिलावा किसीको हानि नहीं करता और किसीको हानि करता है। उसके शहद (वही तेल-जैसा तरल पदार्थ) या धूएँ के लगनेसे शरीर सूज जाता है, अत्यन्त खाज चलती है और घाव हो जाते हैं । उन घावोंसे कितने ही आदमी मर भी जाते हैं।
औषधि-प्रयोग। शास्त्रमें भिलावेके सैकड़ों प्रयोग लिखे हैं, बतौर-नमूनेके दो-चार हम भी नीचे लिखते हैं,--
(१) भिलावोंसे एक पाक बनता है, उसे “अमृतभल्लातक पाक" कहते हैं। उसके सेवन करनेसे बहुधा रोग चला जाता और हिलते हुए दाँत जमकर बल-वृद्धि होती है । यह पाक कोढ़पर रामवाण है। बनानेकी विधि "चिकित्सा-चन्द्रोदय" चौथे भागके पृष्ठ ३१२ में देखिये।
(२) छोटे-छोटे शुद्ध भिलावोंको गुड़में लपेटकर निगल जानेसे कफ और वायु नष्ट हो जाते हैं।
(३) शुद्ध भिलावोंको गुड़के साथ कूटकर गोलियाँ बना लो । पीछे हाथ और मुंहको घीसे चुपड़कर खाओ। इस तरह खानेसे शरीरकी पीड़ा, अकड़न या शरीर रह जाना, सर्दी, बवासीर, कोढ़ और नारू या बाला--ये सब रोग जाते रहते हैं।
नोट-अपने बलाबल-अनुसार एकसे सात भिलावे तक खाये जा सकते हैं।
(४) तीन माशे भिलावेकी गरी, छै माशे शक्करके साथ, खानेसे पन्द्रह दिनमें पक्षाघात-अज्ङ्ग और मृगी रोग नाश हो जाते हैं।
(५) शुद्ध भिलावे, असगन्ध, चीता, बायबिडंग, जमालगोटेकी जड़, अमलताशका गूदा और निबौली--इन्हें कॉजीमें पीसकर लेप करनेसे कोढ़ जाता रहता है।
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