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सर्प विष चिकित्सा में याद रखने योग्य बातें |
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मिलेगा और उसकी जान भी खतरे में हो जायगी । अतः जिसके मुख में उपरोक्त घाव आदि न हों, वही दंश स्थानको चूसे। इसके सिवा, चूसा हुआ खून और ज़हर गलेमें न चला जाय, इसका भी पूरा ख्याल रखना होगा । इसके लिये, अगर मुँ हमें कपड़ा, राख, औषधि, गोबर या मिट्टी भर ली जाय तो अच्छा हो । ज़हर चूस चूसकर थूक देना चाहिये । जब काम हो चुके, साफ़ जलसे कुल्ले कर डालने चाहियें ।
इस तरह, कभी-कभी ख़तरा भी हो जाता है, अतः बारीक झिल्लीकी पिचकारी या एअर - पम्प ( Air Pump ) से खून मिला जहर चूसा जाय, तो उत्तम हो । कोई-कोई सींगीपर मकड़ीका जाला लगाकर भी ज़हर चूसते हैं, यह भी उत्तम देशी उपाय है ।
( ४ ) अगर साँपने उँगली - प्रभृति किसी छोटे अवयव में दाँत मारा हो, तो उसे साफ़ काटकर फेंक दो । यह उपाय, डसने के साथ ही, एक दो सैकिण्डमें ही किया जाय, तब तो पूरा लाभदायक हो सकता है, क्योंकि इतनी देर में जहर ऊपर नहीं चढ़ सकता । जब ज़हर उस अवयव से ऊपर चढ़ जायगा, तब कोई लाभ नहीं होगा ।
अगर विष ऊपर न चढ़ा हो, अवयव छोटा हो, तो वहाँकी जितनी ज़रूरत हो उतनी चमड़ी फौरन काट फेंको। अगर खून में मिलकर ज़हर आगे बढ़ रहा हो, तो साँपके इसे हुए स्थानको तेज़ नश्तर या चाकू-छुरीसे चीर दो; ताकि वहाँका खून गिरने लगे और उसके साथ विष भी गिरने लगे ।
अथवा
साँपके डसे हुए स्थानको दो अँगुलियोंसे, चिमटीकी तरह पकड़कर, कोई चौथाई इंच काट डालो; यानी उतनी खाल उतारकर फेंक दो । काटते ही उस स्थानको गरम जलसे धोओ या गरम जलके तरड़े दो, ताकि खून बहना बन्द न हो और खूनके साथ
* वाग्भट्ट ने कहा है, कि सर्प विष डसे हुए स्थानमें १०० मात्रा काल तक ठहरकर, पीछे खून में मिलकर शरीरमें फैलता है ।
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