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राजयक्ष्मा और उराक्षतकी चिकित्सा । सकते हो । अगर इसे और भी बढ़िया बनाना हो, तो इस अर्क में बकरीका दूध मिला-मिलाकर, दो बार फिर अर्क खींच लेना चाहिये ।
नोट--ये तीनों नुसख पं० देवदत्तजी शर्मा--वैद्यशास्त्री, शङ्करगढ़ ज़िला गुरुदासपुरके हैं; अतः हम शास्त्रीजीके कृतज्ञ हैं। हमने ये परोपकारार्थ लिये हैं। श्राशा है, श्राप क्षमा करेंगे । “परोपकाराय सतां विभूतयः ।”
(२६) क्षय-रोग-नाशक एक और उत्तम औषधि लिखते हैं
इलायची, तेजपात, पीपर, दालचीनी, जेठी मधु, चिरायता, पित्तपापड़ा, खैरकी छाल, जवासा, पुनर्नवा, गोरखमुण्डी, नागकेशर, बबूलकी छाल और अड़ सा--इन सबको एक-एक छटाँक लेकर जौकुट करो और सबका ६४ भाग--छप्पन सेर पानी डालकर, कलईदार कढ़ाहीमें काढ़ा पकाओ। जब चौथाई यानी १४ सेर पानी रह जावे, उतारकर, उसमें १ सेर शहद मिलाकर, चीनीके पुख्ता भाँड़में भर दो। उसका मुँह बन्द करके, सन्धोंपर कपरौटी कर दो
और ज़मीनमें गढ़ा खोदकर एक महीना गाड़े रखो। ___ एक महीने बाद निकालकर छान लो। अगर इसे बहुत दिन टिकाऊ बनाना हो, तो इसमें हर दो सेर पीछे सवा तोले रैक्टीफाईड स्पिरिट मिला दो।
इसकी मात्रा तीन माशेकी होगी। हर मात्रा २ तोले जलमें मिलाकर, रोगीको, रोगकी हर अवस्थामें, दे सकते हैं। यह बहुत उत्तम योग है। यह पेटेण्ट दवाके तौरपर बेचा जा सकेगा, क्योंकि यह बिगड़ेगा नहीं।
(२७) हमने पीछे इसी भागमें "द्राक्षासव"का एक नुसना अपना सदाका आजमूदा लिखा है। यहाँ एक और नुसता लिखते हैं। यह भी उत्तम है:
(१) ढाई सेर बीज निकाले मुनक्के लेकर कुचल लो और साढ़े पच्चीस सेर जलमें डाल, कलईदार कढ़ाहीमें काढ़ा पका लो। जब
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