Book Title: Chikitsa Chandrodaya Part 05
Author(s): Haridas
Publisher: Haridas
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राजयक्ष्मा और उरक्षितमें पथ्यापथ्य । यक्ष्मा और उरःक्षत-रोगमें पथ्यापथ्य ।
पथ्य। मदिरा-शराब, जङ्गली जानवरोंका सूखा मांस, मूंग, साँठी चाँवल, गेहूँ, जौ, शालि चाँवल, लाल चाँवल, बकरका मांस, मक्खन, दूध, घी, कच्चा मांस खानेवाले पक्षियोंका मांस, सूर्यकी तेज किरणों
और चन्द्रमाकी किरणोंसे तपे हुए और शीतल लेह्य-चाटनेके पदार्थ, बिना पके मांसका चूरा, गरम मसाला, चन्द्रमाकी किरण, मीठे रस, केलेकी पकी गहर, पका हुआ कटहल, पका आम, आमले, खजूर, छुहारे, पोहकरमूल, फालसे, नारियल, सहजना, ताड़के ताजा फल, दाख, सौंफ, सैंधानोन, गाय और भैंसका घी, मिश्री, शिखरन, कपूर, कस्तूरी, सफेद चन्दन, उबटन, सुगन्धित वस्तुओंका लेप, स्नान, उत्तम गहने, जल-क्रीड़ा, मनोहर स्थानमें रहना, फूलोंकी माला, कोमल सुगन्धित हवा, नाच, गाना, चन्द्रमाकी शीतल किरणोंमें विहार, वीणा आदि बाजोंकी आवाज, हिरणके जैसी आँखोंवाली स्त्रियोंको देखना, सोने, मोती और जवाहिरातके गहने पहनना, दान-पुण्य करना और दिल खुश रखना-ये सब क्षय-रोगीको हितकारी हैं।
जो रोगी अधिक दोषोंवाला पर बलवान हो, उसे हलका जुलाब देकर दवा सेवन करानी चाहिये।
जिस क्षयवालेका मांस सूखा जाता हो, उसे केवल मांस खानेवाले जानवरोंका मांस जीरेके साथ खिलाना चाहिये। शाम-सवेरे हवा खिलानी चाहिये । दवाओंके बने हुए “चन्दनादि तैल" या "लाक्षादि तैल" वगैरमेंसे किसीकी मालिश करवाकर शीतकालमें गरम जलसे और गरमीमें शीतल जलसे स्नान कराना चाहिये ।
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