Book Title: Chikitsa Chandrodaya Part 05
Author(s): Haridas
Publisher: Haridas

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Page 706
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेता है, उसे इसकी चाट पड़ जाती है। दाल-सांगमें जरा-सा मिलानेसे वह खूब जायकेदार बन जाते हैं। पत्थर या काँचकी कटोरीमें जरा देर भिगोकर, जरा-सी चीनी मिलाकर, खानेसे सुन्दर चटनी बन जाती है। मुसाफिरी या परदेशमें जहाँ अच्छा साग-तरकारी या आचार नहीं मिलता, यह बड़ा ही काम देता है। बालक, बूढ़े, स्त्री-पुरुष सब इसे खूब पसन्द करते हैं । दाम १ डि० ॥) आना । लवणभास्कर चूर्ण । - यह चूर्ण हमने बहुत अच्छी विधिसे तैयार कराया है। हमने खूब जाँचकर देखा है, कि पेटकी पुरानी-से-पुरानी बीमारी इसके १ हफ्ते सेवन करनेसे ही आराम होनेका विश्वास हो जाता है । “शाङ्गधर संहिता में इसे संग्रहणी रोगपर अच्छा लिखा है, मगर हमने इससे अपने कल्पित किये अनुपानोंके साथ संग्रहणी, आमवात, मन्दाग्नि, वायुगोला, दस्तक़ब्ज़, तिल्ली और शरीरकी सूजन वगैरः आराम किये हैं । विधि-पत्र चूर्णके साथ है । दाम १ डि० १) नमक सुलेमानी। यह नमक आजकल बहुत जगह मिलता है; परन्तु लोग ठीक विधिसे नहीं बनाते और एक-एकके दश-दश करते हैं । हम इसे असली तौरपर तैयार कराते हैं और बहुत कम मूल्यपर बेचते हैं । इसके सेवनसे अजीर्ण, बदहज़मी, भूख न लगना, पेट भारी रहना, खट्टी डकारें आना, जी मिचलाना, वमन या कय होना आदि समस्त शिकायतें रफा हो जाती हैं । चूर्ण खानेमें खूब जायकेदार है। दाम' अढ़ाई तोलेका ॥) है। बालरोग-नाशक चूर्ण । इस चूर्णके सेवन करनेसे बालकोंका ज्वरातिसार, ज्वर और पतले दस्त, खाँसी, श्वास और वमन क्रय होना-ये सब आराम हो For Private and Personal Use Only

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