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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-प्रसूतिका-चिकित्सा। ५१३ : (१६) पंचमूलके काढ़ेमें गरम किया हुआ लोहा बुझाकर पीनेसे सूतिका रोग नाश हो जाता है।
(२०) वारुणी मदिरामें गरम किया हुआ लोहा बुझाकर, उस मदिराको पीनेसे सूतिका रोग नाश हो जाता है।
(२१) अगर प्रसूताके शरीरमें वेदना हो, तो सागौनकी छाल, हींग, अतीस, पाढ़, कुटकी और तेजबलका काढ़ा, कल्क या चूर्ण ‘घी" के साथ लेनेसे दोषोंकी शान्ति होकर वेदना नाश होती है।
(२२) पीपर, पीपरामूल, सोंठ, इलायची, हींग, भारङ्गी, अजमोद, बच, अतीस, रास्ना और चव्य- इन दवाओंका कल्क या चूर्ण "घी"में भूनकर सेवन करनेसे दोषोंकी शान्ति होकर वेदना नाश होती है।
- ( २३) अगर शरीरमें दर्द हो, तो दशमूलका काढ़ा सूतिकाको पिलाओ।
(२४) अगर खाँसी हो तो "सूतिकान्तक रस" सेवन कराओ।
(२५) अगर अतिसार या संग्रहणी हो, तो “जीरकाद्य मोदक" या “सौभाग्य शुण्ठी मोदक" सेवन कराओ।।
स्त्रीकी योनिके घाव वगैरःका इलाज । तूम्बीके पत्ते और लोध-बराबर-बराबर लेकर, खूब पीसकर योनिमें लेप करो। इससे योनिके घाव तत्काल मिट जाते हैं ।
ढाकके फल और गूलरके फल--इन्हें तिलके तेलमें पीसकर योनिमें लेप करनेसे योनि दृढ़ हो जाती है।
प्रसव होनेके बाद अगर पेट बढ़ गया हो, तो स्त्री २१ दिन तक सवेरे ही पीपरामूलके चूर्णको दही में घोलकर पीवे ।
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