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राजयक्ष्मा और उरक्षितकी चिकित्सा ।
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व्रणशोषके निदान-लक्षण । अगर व्रण या फोड़े वाले मनुष्यके शरीरसे रुधिर या खून निकल जाता है अथवा और किसी वजहसे खून घट जाता है, घावमें दर्द होता और आहार घट जाता है, तो उसको शोष रोग हो जाता है।
उरःक्षत शोषके निदान । ___ बहुत ज़ियादा तीर कमान चलाने, बड़ा भारी बोझ उठाने, बलवानके साथ युद्ध या कुश्ती करने, विषम या ऊँचे-नीचे स्थानसे गिरने, दौड़ते हुए बैल, घोड़े, हाथी, ऊँट या मोटर गाड़ी आदिके रोकने, लकड़ी, पत्थर या हथियार आदिको ज़ोरसे फेंकने, दूसरोंको मारने, बहुत जोरसे चीखने, वेदशास्त्रोंके पढ़ने, जोरसे भागने या दूर जाने, गहरी नदियोंको तैरकर पार करने, घोड़ेके साथ दौड़ने, अकस्मात् उछलने-कूदने या छलांग भरने, कला खाने, जल्दी-जल्दी नाचने अथवा ऐसे ही साहसके और काम करनेसे मनुष्यकी छाती फट जाती है और उसे भयङ्कर उरःक्षत रोग हो जाता है । जो लोग अत्यन्त चोट लगनेपर भी स्त्री-सङ्गम करते हैं और जो रूखा तथा बहुत थोड़ा प्रमाणका भोजन करते हैं, उन्हें भी उरःक्षत रोग होता है। ___ खुलासा यह है, कि जो लोग ऊपर लिखे काम करते हैं, उनकी छाती फट जाती और उसमें घाव हो जाते हैं । इस छातीमें घाव होने के रोगको ही "उरःक्षत" रोग कहते हैं, क्योंकि उरका अर्थ हृदय और क्षतका अर्थ घाव है। उरःक्षत रोगीको ऐसा मालूम होता है, मानो उसकी छाती फट या टूटकर गिर पड़ना चाहती है। ___ क्षय और उराक्षतके निदान-लक्षण आदि महामुनि हारीतने विस्तारसे लिखे हैं। उनके जाननेसे पाठकोंको बहुत कुछ लाभ होनेकी सम्भावना है, अतः हम उन्हें भी यहाँ लिखते हैं:
उरक्षित रोगीकी छाती बहुत दुखती है। ऐसा जान पड़ता है,
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