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चिकित्सा-चन्द्रोदय ।
है, उसे आराम मालूम होता है। पर क्षय-ज्वरमें पसीना आनेसे शरीर हल्का नहीं होता, बल्कि कमजोरी जियादा जान पड़ती है।
साधारण किसी भी ज्वरमें, रोगीके शरीरपर हाथ रखने या उसका बदन छूनेसे उसी समय बदन गरम जान पड़ता है; किन्तु क्षय-रोगीके शरीरपर हाथ रखनेसे, उसी समय, हाथ रखते ही, बदन गरम नहीं मालूम होता । हाँ, थोड़ी देर होनेसे गरमी जान पड़ती है।
साधारण कोई ज्वर अपने समयपर चढ़ता और समयपर उतर भी जाता है । और, सवेरेके समय तो ज्वर अवश्य ही उतर जाता है; लेकिन क्षय-रोगीका ज्वर हर समय कमोबेश बना ही रहता है। तीन बजे रातको खूब पसीने आते हैं, पर फिर भी ज्वर नहीं उतरता, कुछन-कुछ बना ही रहता है।
विषम-ज्वर या शीत-ज्वर आदिमें किनाइन (Quinine ) देनेसे अवश्य लाभ होता है; लेकिन क्षय-ज्वरमें कुनैन देनेसे कोई फायदा नहीं होता, बल्कि नुक़सान ही होता है। ___ और ज्वरोंके साथकी खाँसियोंमें पीप नहीं आती, कफमें कोई गन्ध नहीं होती; लेकिन क्षयकी खाँसीमें रोगीके कफमें पीप होती है,
खून होता है, उसमें बदबू होती है। अगर क्षयवालेका कफ आगके जलते हुए कोयलेपर डाला जाता है, तो उससे हड्डी जलनेकी-सी या पीपकी-सी बुरी दुर्गन्ध आती है। - और ज्वरवाले रोगीका मुँह सोते समय खुला नहीं रहता। अगर खाँसी होती है, तो कभी-कभी खुला रहता है। लेकिन क्षयरोगीका मुंह सोते समय खुला रहता है, क्योंकि उसके फेफड़े कमजोर हो जाते हैं।
प्र०-क्षय-रोग तीन दों में बाँटा जाता है, उसके तीनों दोंके लक्षण कहिये।
उ०-नीचे हम तीनों अवस्थाओंके लक्षण लिखते हैं:
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