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चिकित्सा-चन्द्रोदय । . नोट- यक्ष्मा-रोगमें शराब पीना हितकर है, पर थोड़ी-थोड़ी पीने से लाभ होता है।
(२२) गायका ताजा मक्खन ६ माशे, शहद ४ माशे, मिश्री ३ माशे और सोनेके वरक़ १ रत्ती इनको मिलाकर खानेसे यक्ष्मा अवश्य नाश हो जाता है । यह नुसना कभी फेल नहीं होता । परीक्षित है।
(२३) बकरीका घी बकरीके ही धमें पकाकर और पीपल तथा गुड़ मिलाकर सेवन करनेसे भूख बढ़ती, खाँसी और क्षय नाश होते हैं। परीक्षित है।
(२४) अगर क्षय या जीर्णज्वरवालेके शरीरमें ज्वर चढ़ा रहता हो, हाथ-पैर जलते हों और कमजोरी बहुत हो, तो "लाक्षादि तैल" की मालिश कराना परम हितकर है। अनेकों बार परीक्षा की है । कहा भी है
दौर्बल्ये ज्वर सन्तापे तैलं लाक्षादिकं हितम् । सघृतान्राजमाषान्यो नित्यमश्नाति मानवः ।
तस्य क्षयः क्षयं याति मूत्रमेहोश्च दारुणः ॥ कमजोरी, ज्वर और सन्तापमें लाक्षादि तैल हितकारी है। जो मनुष्य राजमाष-एक प्रकारके उड़दोंको घीके साथ खाता है, उसका क्षय और अति दारुण प्रमेह-रोग नाश हो जाता है ।
धान्यादि क्वाथ । धनिया, सोंठ, दशमूल और पीपर-इन तेरह दवाओंको बराबरबराबर कुल मिलाकर दो या अढ़ाई तोले लेकर, काढ़ा बनाकर, पिलानेसे यक्ष्मा और उसके उपद्रव -पसलीका दर्द, खाँसी, ज्वर, दाह, श्वास और जुकाम नाश हो जाते हैं । परीक्षित है।
त्रिफलाद्यावलेह । त्रिफला, त्रिकुटा, शतावर और लोह-चूर्ण-हरेक दवा चार-चार तोले लेकर कूटकर रख लो । इसमेंसे एक तोले चूर्णकी मात्रा शहदके साथ चटानेसे उरःक्षत और कण्ठ-वेदना नाश हो जाते हैं।
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