________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
राजयक्ष्मा और उरःक्षतकी चिकित्सा ।
५६३
उरःक्षतके विशेष लक्षण । उरःक्षत रोगीकी छातीमें अत्यन्त वेदना होती है, खूनकी कय होती हैं और खाँसी बहुत आती है। खून, कफ, वीर्य और ओजका क्षय होनेसे लाल रंगका खून-मिला पेशाब होता है तथा पसली, पीठ और कमरमें घोरातिघोर वेदना होती है।
निदान विशेषसे उराक्षतके लक्षण । ब्रणके अवरोधसे, धातुको क्षीण करनेवाले मैथुनसे, कोठेमें वायुकी प्रतिलोमता और प्रतिलोम हुए मलसे जिसकी छाती फट जाती है,उसका श्वास, अन्न पचते समय, बदबूदार निकलता है।
साध्यासाध्यके लक्षण । अगर उरःक्षत रोगके कम लक्षण हों, अग्नि दीप्त हो, शरीरमें बल हो और यह रोग थोड़े ही दिनोंका हुआ हो, तो साध्य होता है। यानी आराम हो जाता है।
जिस उरःक्षतको पैदा हुए एक साल हो गया हो, वह बड़ी मुश्किलसे आराम होता है।
जिस उरःक्षतमें सारे लक्षण मिलते हों, उसे असाध्य समझकर उसकी चिकित्सा न करनी चाहिये ।
नोट-अगर कोई उत्तम वैद्य मिल जाता है, तो आराम हो भी जाता है, पर रोगी हज़ार दिनसे अधिक नहीं जीता।
अगर मुखसे खून गिरता है यानी खूनकी कय होती हैं, खाँसीका जोर होता है, पेशाबमें खून आता है, पसलियोंमें दर्द होता है और पीठ तथा कमर जकड़ जाती है तो उरक्षत रोगी नहीं जीता, क्योंकि ये असाध्य रोगके लक्षण हैं।
For Private and Personal Use Only