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चिकित्सा-चन्द्रोदय । मानो कोई छातीको चीरे डालता है या उसके दो टुकड़े किये डालता है, पसलियोंमें दर्द होता है, सारे अङ्ग सूखने लगते हैं, देह काँपने लगती है; अनुक्रमसे वीर्य, बल, वर्ण, कान्ति और अग्नि क्षीण होती है; ज्वर चढ़ता है, मनमें दीनता होती है, मलभेद् या दस्त होते हैं, अनि मन्द हो जाती है। खाँसनेसे काले रंगका, बदबूदार, पीला, गाँठदार, बहुत-सा
खून-मिला कफ बारम्बार गिरता है। उरःक्षत रोगी वीर्य और ओजके क्षयसे अत्यन्त क्षीण हो जाता है। - खुलासा यह है, कि जो आदमी अपनी ताकतसे ज़ियादा काम करता है, उसकी छाती फट जाती है। यानी उसके लंग्ज या फेंफड़ों में खराबी हो जाती है, वह फट जाते हैं। उसके फटने या उनमें घाव हो जानेसे मैं हसे खून आने लगता है । अगर उस घावका जल्दी ही इलाज नहीं होता, वह जख्म दवाएँ खिलाकर जल्दी ही भरा नहीं जाता, तो वह पक जाता है । पकनेसे मवाद पड़ जाता है और वही मुँ हसे निकलने लगता है । वह घाव फिर नहीं भरता और नासूर हो जाता है। बस इसीको “उरक्षित" कहते हैं । उरःक्षतका अर्थ हृदयका घाव है। लंग्ज या फेफड़े हृदयमें रहते हैं, इसीसे इसे "उरक्षत"
नोट याद रखो, लिवर, कलेना, जिगर या यकृतमें बिगाड़ होनेसे भी मुंहसे खून या मवाद पाने लगता है। अंव: बैंचको अच्छी तरह समझ-बूझकर इलाज करना चाहिये । मनुष्य-शरीर में यकृत वाहिनी ओरकी पसलियोंके नीचे रहता है। इसका मुख्य काम खून और पित्त बनाना है।
जब यकृत या लिवरमें मवाद भर जाता या सूजन आ जाती है, तब उसके छूनेसे तकलीफ होती है। अगर दाहिनी तरकी पसलोके नीचे दबानेसे सख्तीसी मालूम हो अथवा फोड़ा-सा दूखे, कुछ पीड़ा हो अथवा दाहिनी करवट लेटने से दर्द हो या खाँसी ज़ोरसे उठे, तो समझो कि यकृतमें मवाद भर गया है। . जब किसी रोगीका पुराना उवर या खाँसी अनेक चेष्टा करने पर भी प्राराम न हों, कम-से-कम तब तो यकृतकी परीक्षा करो । क्योंकि यकृतमें सूजन आये बिना ज्वर और खाँसी बहुत दिनों तक ठहर नहीं सकते।
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