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चिकित्सा-चन्द्रोदय । दो तह होती हैं । जब इन दोनों तहोंक बीचमें पानी-जैसा पतला पदार्थ जमा हो जाता है; तब अण्ड बड़े मालूम होते हैं । उस समय "जलदोष" हो गया है या पानी भर गया है, ऐसा कहते हैं। - इस अण्डको “शुक्र-ग्रन्थि" भी कहते हैं। इसमें दो-तीन सौ छोटेछोटे कोठे होते हैं। इन कोठोंमें बाल-जैसी पतली आठ-नौ सौ नलियाँ रहती हैं। ये नलियाँ बहुत ही मुड़ी हुई रहती हैं और पीछेकी तरफ जाकर एक दूसरेसे मिलकर जाल-सा बना देती हैं । इस जालमेंसे बीस या पञ्चीस बड़ी नलियाँ निकलती हैं और आगे चलकर इन सबके मिलनेसे एक बड़ी नली बन जाती है। इसीको “शुक्र-प्रनाली" कहते हैं। शुक्र ग्रन्थिकी नलियाँ वास्तवमें छोटी-छोटी नलीक आकारकी प्रन्थियाँ हैं। इन्हींमें वीर्य बनता है । इस वीर्य या शुक्रके मुख्य अवयव शुक्रकीट या शुक्राणु हैं। ___ अण्डकोषको टटोलनेसे, ऊपरके हिस्से में, एक रस्सी-सी मालूम होती है; इसी रस्सीमें बंधे हुए अण्ड अण्डकोषमें लटके रहते हैं। इस रस्सीको अण्डधारक रस्सी कहते हैं । यह पेट तक चली जाती है। कभी-कभी उसी राहसे अन्त्र या आँतोंका कुछ भाग अण्डकोषमें चला आता है, तब फोते बढ़ जाते हैं । उस समय "अंत्रवृद्धि" रोग हो गया है, ऐसा कहते हैं ।
शुक्राशय।
लिख आये हैं, कि अण्ड या शुक्र-प्रन्थिमें शुक्र या वीर्य बनता है। यही शुक्र शुक्र-प्रणाली द्वारा शुक्राशयमें आकर जमा होता है। फिर मैथुनके समय, यह शुक्राशयसे निकलकर, मूत्रमार्गमें जा पहुँचता
और वहाँसे सुपारीके छेदमें होकर योनिमें जा गिरता है। यह शुक्राशय भी वस्तिगह्वर या पेड़ की पोलमें, मूत्राशयसे लगा रहता है। शुक्राशयकी दो थैली होती हैं । इनके पीछे ही मलाशय है ।
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