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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा -योनि-रोग |
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और योनि से पीप बहना वग़ैरः निश्चय ही आराम हो जाते हैं । यह तेल हमने जिस तरह आजमाया है नीचे लिखते हैं:
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धवके पत्ते, आमले के पत्ते कमलके पत्ते, काला सुरमा, मुलेठी, जामुनकी गुठली, आमकी गुठली, कशीश, लोध, कायफल, तेंदूका फल, फिटकरी, अनारकी छाल और गूलरके कच्चे फल- इन १४ दवाओंको सवा-सवा तोले लेकर कूट-पीस लो । फिर एक सेर अढ़ाई पाव बकरी के पेशाब में, ऊपरके चूर्ण को पीसकर, लुगदी बना लो। फिर एक कढ़ाही में ऊपर लिखी बकरीके मूत्रमें पिसी लुगदी, एक सेर काले तिलोंका तेल और एक सेर अढ़ाई पाव गायका दूध डालकर, चूल्हे पर रख, मन्दाग्नि से पकाओ । जब दूध और मूत्र जलकर तेल- मात्र रह जाय, उतारकर छान लो और बोतलमें भर दो ।
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नोट-- अगर यह तेल पीठ, कमर और पीठकी रोढ़पर मालिश किया जाय, योनि में इसका फाहा रखा जाय और पिचकारी में भर-भरकर योनिमें छोड़ा जायतो विप्लुता, परिप्लुता, योनिकन्द, योनिकी सूजन, घाव और मवाद बहना अवश्य आराम हो जाते हैं । इन रोगोंपर यह तेल रामवाण है ।
( २ ) वातला योनि में अथवा उस थोड़े स्पर्शवाली हो - उसके पर्दे रखना हितकर है।
योनिमें जो कड़ी, स्तब्ध और बिठाकर - तिली के तेलका फाहा
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( ३ ) अगर योनि प्रत्र सिनी हो, लिङ्गकी रगड़से बाहर निकल आई हो, तो उसपर घी मलकर गरम दूधका बफारा दो और उसे हाथ से भीतर बिठा दो। फिर नीचे लिखे वेशवारसे उसका मुँह बन्द करके पट्टी बाँध दो । सोंठ, कालीमिर्च, पीपर, धनिया, जीरा, अनार और पीपरामूल-- इन सातोंके पिसे छने चूर्णको पण्डित लोग "वेशवार” कहते हैं ।
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( ४ ) अगर योनि में दाह या जलन होती हो, तो नित्य आमलों के रसमें चीनी मिलाकर पीनी चाहिये । अथवा कमलिनीकी जड़ चावलों के पानी में पीसकर पीनी चाहिये ।