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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-नष्टार्तव ।
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है। शराब खिंच जाने के बाद देग या भबके में जो तलछट नीचे रह जाती है, उसे ही “सुराबीज' कहते हैं, यह कलारीमें मिलती है । इस बत्तीमें कोई जवाखार लिखते हैं और कोई मुलहटी।
(४) घरमें बहुत दिनोंकी बँधी हुई आमके पत्तोंकी बन्दनवारको जलमें पकाकर, उस जलको छानकर, पीनेसे नष्ट हुआ रजोधर्म फिर होने लगता है। ____ (५) लाल गुड़हलके फूलोंको, काँजीमें पीसकर, पीनेसे रजोदर्शन होने लगता है।
(६) मालकाँगनीके पत्ते भूनकर, काँजीके साथ पीसकर पीनेसे रजोधर्म होता है।
(७) कमलकी जड़को पीसकर खानेसे रजोधर्म होता है।
(८) सुराबीजको शीतल जलके साथ पीनेसे स्त्रियोंको रजोधर्म होता है।
(६) जवारिश-कलौंजी सेवन करनेसे रजोधर्म जारी होता और दर्द-पेट भी आराम हो जाता है । हैज़का खून जारी करने, पेशाब लाने और गर्भाशयकी पीड़ा आराम करनेमें यह नुसखा उत्तम है। कई बार परीक्षा की है।
(१०) काला जीरा दो तोले, अरण्डीका गूदा आध पाव और सोंठ एक तोला-सबको जोश देकर पीस लो और पेटपर इसका सुहाता-सुहाता गरम लेप कर दो। कई रोजमें, इस नुसनेसे रजोधर्म होने लगता और नलोंका दर्द मिट जाता है।
(११) थोड़ा-सा गुड़ लाकर, उसमें जरा-सा घी मिला दो और एक कलछीमें रखकर आगपर तपाओ । जब पिघलकर बत्ती बनानेलायक़ हो जाय, उसमें जरा-सा "सूखा बिरौजा" भी मिला दो और छोटी अँगुली-समान बत्ती बना लो। इस बत्तीको गर्भाशयके मुँह या धरनमें रखनेसे रजोधर्म या हैज़ खुलकर होता है।
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