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विष-उपविषोंकी विशेष चिकित्सा--"जमालगोटा"। CCEED%CED HSCERSECREre जमालगोटेका वर्णन और उसकी
शान्तिके उपाय।
E0:8
S मालगोटा विष नहीं है; पर यह कभी-कभी विषका-सा काम
न करता है। यह दो तरहका होता है। एकको छोटी दन्ती ODO और दूसरेको बड़ी दन्ती कहते हैं। इसकी जड़को दन्ती, फलोंको दन्ती-बीज या जमालगोटा कहते हैं। ये फल अरण्डीके छोटे बीजों-जैसे होते हैं। ये बहुत ही तेज़ दस्तावर होते हैं। बिना शोधे खानेसे भयानक हानि करते और इस दशामें वमन और विरेचन दोनों होते हैं। अतः इन्हें बिना शोधे हरगिज़ न लेना चाहिये।
फलोंके बीचमें एक दो परती जीभी-सी होती है, उसीसे कय होती हैं। मीगियोंमें तेल-सा तरल पदार्थ होता है; इसीसे वैद्य लोग शोधकर, उस चिकनाईको दूर कर देते हैं। जब जीभी निकल जाती है
और चिकनाई दूर हो जाती है, तब जमालगोटा खानेके कामकाहोता है। __ जमालगोटा भारी, चिकना, दस्तावर तथा पित्त और कफ नाशक है। किसीने इसे कृमिनाशक, दीपक और उदरामय-शोधक भी लिखा है। किसीने लिखा है, जमालगोटा गरम, तीक्ष्ण, कफनाशक, क्लेद-कारक और दस्तावर होता है।
जमालगोटेका तेल, जिसे अगरेजीमें, "क्रोटन आयल" कहते हैं, अत्यन्त रेचक या बहुत ही तेज़ दस्तावर होता है। इससे अफारा, उदररोग, संन्यास, शिररोग, धनुःस्तम्भ, ज्वर, उन्माद, एकांग रोग, आमवात और सूजन नष्ट होते हैं। इससे खाँसी भी जाती है । डाक्टर लोग इसका व्यवहार बहुत करते हैं।
वैद्य लोग जमालगोटेको शोधकर, उचित औषधियोंके साथ, एक रत्ती अनुमानसे देते हैं। इसके द्वारा दस्त करानेसे उदर-रोग और जीर्णज्वर आदि रोग नाश हो जाते हैं।
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