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चिकित्सा-चन्द्रोदय । अफ़ीममें स्तम्भन-शक्ति होती है। भारतमें, आजकल, सौमें नव्वे आदमियोंको प्रमेह, धातु-क्षीणता या धातु-दोषका रोग होता है। ऐसे लोग स्त्री-प्रसंगमें दो-चार मिनट भी नहीं ठहरते; क्योंकि वीर्यके पतले या दोषी होनेसे स्तम्भन नहीं होता। इसलिये अनेक मूर्ख अफीम, गाँजा या चरस आदि नशीले पदार्थ खाकर प्रसंग करते हैं। कुछ दिनों तक इनके खानेसे उन्हें आनन्द आता और कुछ-न-कुछ अधिक स्तम्भन भी होता है । फिर तो उन्हें इसका व्यसन हो जाता है-आदत पड़ जाती है, रोज़ खाये-पिये बिना नहीं सरता । कुछ दिन इनके लगातार सेवन करते रहनेसे फिर स्तम्भन भी नहीं होता। नसें ढीली पड़ जाती और पुरुषत्व जाता रहता है। महीनों स्त्रीकी इच्छा नहीं होती। इसके सिवा, और भी बहुत-सी हानियाँ होती हैं, जिन्हें हम आगे लिखेंगे। __ भारतमें, अफीम दवाओं में मिलाने या और तरह सेवन करानेकी चाल पहले नहींके समान थी । हिकमतकी दवाओंमें अफीमका जियादा इस्तेमाल देखा जाता है । हकीमोंकी देखा-देखी वैद्य भी इसे, मुसल्मानी ज़मानेसे, दवाओंके काममें लाने लगे हैं । योरुपमें अफीमका सत्त- मारफ़िया बहुत बरता जाता है। अफ़ीम हानिकर उपविष होनेपर भी, अनेक रोगोंमें अपूर्व चमत्कार दिखाती है। बेमैल और स्वच्छ अफीम दवाकी तरह काममें लाई जाय, तो बड़ी गुणकारी साबित होती है। अनेक असाध्य रोग जो
और दवाओंसे नहीं जाते, इससे चले जाते हैं। चढ़ी उम्र में जब नजलेकी खाँसी होती है, तब शायद ही किसी दवासे पीछा छोड़ती हो । हमने अनेक नजलेकी खाँसीवालोंको तरह-तरहकी दवायें दी, मगर उनकी खाँसी न गई; अन्तमें अफीम खानेकी सलाह दी। अल्प मात्रामें शुद्ध अफीम खाने और उसपर दूध अधिक पीनेसे वह आरोग्य हो गये; खाँसीका नाम भी न रहा। इतना ही नहीं,
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